91 जीन आनुवांशिकता की इकाई है तथा इन्ही के द्वारा मातृ-कोशिका से युग्मकों के द्वारा संतानों में आनुवंशिक लक्षणों का स्थानांतरण होता है |
92 मनुष्य में गुण सूत्रों की संख्या 46 होती है | निषेचन के समय यदि अण्डाणु X गुण सूत्र वाले शुक्राणु से मिलता है तो युग्मनज में 23 वीं जोडी XX होगी और इससे बनने वाली संतान लडकी होगी |
93 इसके विपरीत किसी अण्डाणु से Y गुण सूत्र वाला शुक्राणु निषेचित होगा तो, 23 वीं जोडी XY गुण सूत्र वाला युग्मनज बनेगा तथा संतान लडका होगा |
94 नर में X एवं Y लिंग गुणसूत्र तथा मादा में दो X लिंग गुणसूत्र पाये जाते हैं | अत: पुरूष का गुणसूत्र संतान में लिंग निर्धारण के लिए उत्तरदायी होता है |
95 गुणसूत्र का निर्माण डी.एन.ए. तथा प्रोटीन से होता है |
96 उत्परिवर्तन का कारण जीन परिवर्तन होता है |
97 जाति एवं गुणसूत्रों की संख्या : मटर-14, मेंढक-26, चूहा-40, मनुष्य-46, चिम्पाजी-48 |
98 हीमोफीलिया : यह एक वंशानुगत रोग है, इस रोग से पीडित व्यक्ति में रक्त के जमने या थक्का बनने की क्षमता समाप्त हो जाती है |
99 वर्णांधता : यह एक आनुवांशिक रोग है | इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति लाल एवं हरे रंग में भेद नहीं कर सकता है | यह लिंग सहलग्न रोग है | इसका जीन X गुणसूत्र पर होता है |
100 वर्णांध पुरूष के X गुणसूत्र पर वर्णांधता का जीन होता है | यह जीन पिता से पुत्री में और पुत्री से बेटे में वंशागत होता है |
101 सामान्य स्त्री एवं वर्णांध पुरूष की पुत्रियां वाहक होती हैं |
102 वर्णांध पुरूष व सामान्य स्त्री की सभी संतानें सामान्य होती हैं | किंतु लडकियां इसका वाहक होती हैं |
103 वाहक स्त्री व सामान्य पुरूष की संतानों मे सभी लडकियां सामान्य दृष्टि वाली होती हैं किंतु इनके पुत्रों में से आधे सामान्य और आधे वर्णांध होते हैं |
104 वाहक स्त्री व वर्णांध पुरूष के 50 प्रतिशत लडके व लडकियां सामान्य होते हैं और बाकी 50 प्रतिशत वर्णांध होते हैं |
105 वर्णांध स्त्री तथा सामान्य पुरूष की सभी लडकियां वाहक तथा लडके सभी वर्णांध होते हैं |
106 जैव विकास के सिद्धांतों में लैमार्क का सिद्धांत, डार्विन का सिद्धांत तथा उत्परिवर्तन का सिद्धांत प्रमुख हैं |
107 लैमार्क का सिद्धांत, जे.बी.डी.लैमार्क ने अपनी पुस्तक Philosophic Zoologique में प्रस्तुत कर बताया कि किसी भी जीव के विकास में वातावरण का प्रभाव, अंगों का उपयोग और अनुप्रयोग तथा उपार्जित लक्षणों की वंशागति का प्रभाव पडता है | इसे उपार्जित लक्षणों की वंशागति का सिद्धांत भी कहते हैं |
108 डार्विन वाद को चार्ल्स डार्विन ने प्रस्तुत किया | अपनी पुस्तक Origin of Species by Natural Selection में निम्न बिंदु प्रस्तुत किया- अत्यधिक संतान उत्पत्ति, जीवन संघर्ष, विभिन्नताएं तथा आनुवंशिकता, योग्यतम की उत्तरजीविता, वातावरण के प्रति अनुकुलन तथा नई जातियों की उत्पत्ति |
109 डार्विन वाद को प्रकृति-वरण का सिद्धांत भी कहते हैं |
110 ह्यूगो डी ब्रीज ने उत्परिवर्तन के सिद्धांत को प्रस्तुत किया | जीव जंतुओं में अचानक उत्पन्न होने वाले लक्षण उत्परिवर्तन कहलाते हैं |
111 पुरानी जातियों से जीन परिवर्तन के कारण नयी जातियों की उत्पत्ति को नव डार्विन वाद कहते हैं |
112 त्वचा मानव शरीर का सबसे बडा अंग है |
113 मेलेनिन नामक काले रंग का पदार्थ त्वचा को उसका रंग देता है तथा सूर्य के पराबैगनी किरणों को अवशोशित करके शरीर की रक्षा करता है
114 त्वचा संवेदांग का भी काम करता है |
115 त्वचा शरीर का बाह्यतम आवरण है |
116 मनुष्य मे दुग्ध ग्रंथि ‘स्वेद ग्रंथि’ की रूपांतरित रचना है |
117 जीव कोशिका मे खाद्य (ग्लूकोस) का आक्सीजन की सहायता से आक्सीकरण होता है, इससे कार्बन डाई आक्साइड उत्पन्न होती है तथा ग्लूकोस से ऊर्जा मुक्त होती है |
118 वायुमण्डल के वायु के फेफडे में पहुंचने तथा अशुद्ध वायु के फेफडे से बाहर निकलने की क्रिया को श्वासोच्छवास क्रिया कहते हैं |
119 श्वासोच्छवास मे वायु का मार्ग नासाद्वार - ग्रसनी – कण्ठ – श्वास नली – श्वसनिकाएं – कूपिकाएं होती हैं |
120 मनुष्य मे श्वसन लेने की दर 18 बार प्रति मिनट होती है |

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