चीन में एक गडना करने वाले यंत्र" अबेकस" का अविष्कार हुआ. यह एक यांत्रिक डिवाइस है. जो आज भी चीन,जापान सहित अन्य देशो के अनेक देशो में अंको की गड़ना के लिए काम आती है.
अबेकस तारो का फ्रेम होता है . इन तारो में बिड(पक्की मिटटी के के गोल टुकड़े जिनमे छेद हो) पिरोये रहते है . प्रारभ में अबेकस को व्यापारी गड़नाये करने के काम में   प्रयोग किया करते थे. यह मशीन अंको के  जुडाव ,घटाव,भाग व गुणा की  क्रियाये करने के काम आती है.
शत्रह्वी शताब्दी में फ़्रांस के गणितज्ञ ब्लेज पास्कल ने एक यांत्रिक अंकीय गड़ना यंत्र सन 1645 में विकसित किया . इस मशीन को एडिंग मशीन कहते थे . क्यों की यह केवल जोड़ एवं घटाव को कर सकती थी. यह मशीन घडी और ओडोमीटर के सिधांत पर कार्य करती थी. इसमें कई दाते युक्त चकरिया थी . जो घुमती रहती थी. चक्रियो के दातो पर 0 से 9 तक के अंक छपे रहते थे. प्रत्येक चकरी का एक स्थानीय मान जैसे - इकाई ,दहाई , सैकड़ा आदि था . इसमें प्रत्येक चकरी स्वयं से पिछली चकरी के एक चक्कर लगाने पर एक अंक पर घुमती थी .ब्लेज पास्कल की इस एडिंग मशीन को पस्क्लिने कहए है जो सबसे पहला यांत्रिकीय गड़ना यंत्र था . आज भी कार व स्कूटर के स्पीडोमीटर में यही यंत्र कर करता है.
सन 1694 में जर्मन गणितग्य व दार्शनिक गोटफ्रेड विल्हेम वान लेबनीज़ ने पास्कलायीन का विकसित रूप तैयार किया . जिसे "रेक्निंग मशीन " या लेबनीज़ चक्र कहते है यह मशीन अंको के जोड़ व बाकी के अलावा गुणा एवं भाग की क्रिया करती थी . इसके पश्चात् , इसी प्रकार का एक यंत्रिक गड़ना - यंत्र येरिथोमीटर थामस डे काल्मर ने 1820 में बनाया था. 
कम्पुटर का विकास : जेकार्ड्स लूम,डीफ्फ़रेन्स इंजन ,हालेरिथ,आईकेन और मार्क -1,ए. बी. सी.


जेकार्ड्स लूम

सन 1801 में फ्रांसीसी बुनकर जोसेफ जेकार्ड्स ने कपडे बुनने के येसे लूम का अविष्कार किय जो कपडे में डिजाईनिंग या पैटर्न स्वत देता था . इस लूम की विसेषता यह थी की यह कपडे के पैटर्न को कार्डबोर्ड के छिद्रयुक्त पंचकार्ड से नियंत्रित करता था. पंचकार्ड पर छिद्रों की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति द्वारा धागों को निर्देशित किया जाता था. 
जेकार्ड के इस लूम द्वारा दो विचारधराये प्रश्तुत की गयी जो आगे कम्पुटर के विकास में उपयोगी सिद्ध हुयी . पहली यह  की सुचना   को पञ्चकार्ड पर कोडेड किया जा सकता है . तथा दूसरी विचारधारा यह थी की पंचकार्ड पर संग्रहित सुचना , निर्देश का समूह है जिससे पञ्चकार्ड को जब भी काम में लिया जाएगा तो निर्देशों  का यह समूह एक प्रोग्राम के रूप में कार्य करेगा.

चार्ल्स बैबेज के डीफ्फ़रेन्स इंजन 

 कम्पुटर के इतिहास में उन्नीसवी शताब्दी का प्रारभिक समय स्वर्णिम युग माना जाता है . अंग्रेज गणितज्ञ चार्ल्स बैबेज ने एक यांत्रिक गड़ना मशीन विकसित करने की आवश्यकता तब महसुस की , जबकि गड़ना के लिए बनी हुयी सारणियो में में त्रुटी आती थी . चुकी ए सारणीया हस्त निर्मित थी इसीलिए इनमे त्रुटी आ जाती थी . 
चार्ल्स बैबेज ने सन 1822 में एक मशीन का निर्माण किया जिसका व्यय ब्रिटिश सरकार ने वहन किया . उस मशीन का नाम "डिफरेन्स इंजन" रखा गया . इस मशीन में गियर और शोफ्ट लगे थे और यह भाप से चलती थी. 
इसके पश्चात्  सन 1833 में चार्ल्स बैबेज ने डिफरेन्स इंजन का विकसति प्रारूप तयार किया . यह मशीन कई प्रकार के गड़ना - कार्य करने में सछम थी . यह पंचकार्ड पर संग्रहित निर्देशों के अनुसार कार्य करने में सक्षम थी . इसमे निर्देशों को संघित करने की छमता थी और इसके द्वारा स्वचालित रूप से परिणाम भी छापे जा सकते थे. 
बैबेज का कम्पुटर के विकास में बहुत बड़ा योगदान रहा. बैबेज का येनालिटिकल इंजन आधुनिक कम्पुटर का आधार बना और यही कारन है की चार्ल्स बैबेज को कम्पुटर - विज्ञानं का जनक कहा जाता है . 
चार्ल्स बैबेज के एनालिटिकल इंजन को शुरू में बेकार समझा गया तथा इसकी उपेछा की गयी जिसके कारन बैबेज को अपार निराशा हुयी , परन्तु अप्रत्याशित रूप से एडा आगस्टा , जो प्रशिध कवी लार्ड बायरन की पुत्री थी , ने बैबेज के उस एनालिटिकल इंजन में गड़ना के निर्देशों को विकसित करने में मदद की . चार्ल्स बैबेज को जिस प्रकार "कम्पुटर विज्ञानं का जनक" होने का गौरव प्राप्त है , उसी प्रकार विश्व में एडा आगस्टा को पहली प्रोग्रामर होने का श्रेय जाता है . आगस्टा को सम्मानित करने के उदेश्य से एक प्रोग्रामिंग भाषा का नाम एडा(Ada) रखा गया. 

हालेरिथ सेंसस टेबुलेटर( Hollerith census tabulator)

सन 1890 में कंप्यूटर के इतिहास में अमेरिका की जनगड़ना का कार्य एक महतवपूर्ण घटना थी . सन 1890 से  पूर्व जनगडना  का कार्य पारस्परिक तरीको से किया जाता था . सन 1850 में शुरू की गयी जनगड़ना में 7 वर्ष लगे थे . कम समय में जनगड़ना के कार्य को संपन्न करने के लिए हर्मन होलेरिथ (1869-1926) ने एक मशीन बनायीं जिसमें पञ्चकार्डो को विद्युत विद्युत द्वारा संचालित किया गया . उस मशीन की सहायता से जनगड़ना (Census) का कार्य केवल तीन वर्ष में संपन्न हो गया . सन 1896 में होलेरिथ ने पंचकार्ड यंत्र बनाने की एक कंपनी टेबुलेटिंग मशीन कम्पनी श्थापित की . सन 1911 में इस कम्पनी का अन्य कम्पनी के साथ विलय हुआ और इसका परिवर्तित नाम " कप्यूटर टेबूलेटिंग रिकार्डिंग कम्पनी " हो गया. 
सन 1924 में उस कम्पनी का नाम पुनः परिवर्तित होकर "इंटरनेशनल बिजनेस मशीन " हो गया. जो आज कप्यूटर निर्माण में विश्व की अग्रणी कम्पनियों में से एक है. अब कम्यूटर विद्युत् - यांत्रिक के युग में आगये है . क्योंकी होलेरिथ की मशीन यांत्रिक थी और विद्युत से संचालित थी 

आईकेन और मार्क -1

सन 1940 में विद्युत् यांत्रिक कम्प्यूटिंग शिखर पर पहुच चुकी थी . आई. बी.एम. के चार शीर्ष इंजीनियरों व डॉ. हॉवर्ड आयीकेन ने सन 1944 में एक  मशिन जी विकसित किया . और इसका अधिकारिक नाम ऑटोमेटिक सिक्वेंस कंट्रोल्ड केलकुलेटर रखा . बाद में इस मशीन का नाम B रखा गया. यह विश्व का सबसे पहला विद्युत् यांत्रिक कम्प्यूटर था. इसमे 500 मिल लम्बाई के तार व 30 लाख विद्युत् संयोजन थे. यह 6 सेकण्ड में के गुणा और 12 सेकण्ड में एक भाग की क्रिया कर सकता था. 
19 वी शताब्दी के चौथे दशक के मध्य में इलेक्ट्रोनिक अवधारणाए तेजी से बढ़ रही थी . इनसे कम्पुटर भी अछूते नहीं थी. अयिकेन तथा आई.बी.एम. मार्क 1 इलेक्ट्रोनिक प्रौद्योगिक के आने के साथ ही पुराने हो गए . इस प्रौद्योगिक में केवल विद्युत धारा द्वारा निर्मित संकेत ही आव्स्यक्ताओ को प्रोसेस करते थे तथा इस प्रौद्योगिक पर आधारित डिवाइसो में किसी कल पुरजो की आव्स्यक्ता नहीं थी . अतः तेज सिद्ध हुआ. 

ए. बी. सी.

सन 1945 में एटानसाफ तथा क्लिफार्ड बेर्री ने एक एक इलेक्ट्रॉनिक मशीन को विकसित किया जिसका नाम ए. बी.सी. रखा गया. ABC  शब्द एटनसॉफ बेर्री कम्पुटर का संछिप्त रूप है . एबीसी सबसे पहला इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल कम्पयूटर था.
डिजिटल अवधारणा तब भी वहा थी जब मशीने यांत्रिक या विद्युत् - यांत्रिक होती थे. 1935 में कोनार्ड ज्यूज(Konard Zuse)  जो जर्मन थे. ने पहला डिजिटल कम्प्यूटर द्विआधारी अंकगणित तथा प्रोग्राम नियंत्रण का प्रयोग कर बनाया . इसका नाम जेड एक (Z1) था. यह एक यांत्रिक मशीन थी . बाद में उन्होंने एक मशीन जेड दो (Z2) बनायीं जिसमें उन्होंने विद्युत् चुम्बकीय रिलेज का प्रयोग किया . 
1945 -46 के दौरान , जॉन विलियम मुचली(John William Muchly) तथा जे.पी.अकर्ट ने सबसे पहला सामान्य उद्देशीय कम्प्यूटर का विकास पेन्सिल्वेनिया के विश्वविद्यालय में किया जिसका नाम एनिक (ENIAC) रखा गया. जिसका पूर्ण रूप इलेक्ट्रोनिक न्यूमेरिक इन्तिग्रेटर एंड कम्प्यूटर है .

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