प्राचीन काल के ज्योतिर्विदों में आर्यभट्ट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, आर्यभट्ट द्वितीय, भास्कराचार्य, कमलाकर जैसे प्रसिद्ध विद्वानों का इस क्षेत्र में अमूल्य योगदान है। इन सभी में आर्यभट्ट सर्वाधिक प्रख्यात हैं। वे गुप्त काल के प्रमुख ज्योतिर्विद थे। आर्यभट्ट का जन्म ई.स. 476 में कुसुमपुर (पटना) में हुआ था। नालन्दा विश्वविद्यालय में उन्होंने शिक्षा प्राप्त की थी। 23 वर्ष की आयु में आर्यभट्ट ने 'आर्यभट्टीय ग्रंथ' लिखा था। उनके इस ग्रंथ को चारों ओर से स्वीकृति मिली थी, जिससे प्रभावित होकर राजा बुद्धगुप्त ने आर्यभट्ट को नालन्दा विश्वविद्यालय का प्रमुख बना दिया।

आर्यभठ जी का योगदान :

पृथ्वी गोल है और अपनी धुरी पर घूमती है, जिसके कारण रात और दिन होते हैं, इस सिद्धांत को सभी जानते हैं, पर इस वास्तविकता से बहुत लोग परिचित होगें कि 'निकोलस कॉपरनिकस' के बहुत पहले ही आर्यभट्ट ने यह खोज कर ली थी कि पृथ्वी गोल है और उसकी परिधि अनुमानत: 24835 मील है। राहु नामक ग्रह सूर्य और चन्द्रमा को निगल जाता है, जिससे सूर्य और चन्द्र ग्रहण होते हैं, हिन्दू धर्म की इस मान्यता को आर्यभट्ट ने ग़लत सिद्ध किया। चंद्र ग्रहण में चन्द्रमा और सूर्य के बीच पृथ्वी के आ जाने से और उसकी छाया चंद्रमा पर पड़ने से 'चंद्रग्रहण' होता है, यह कारण उन्होंने खोज निकाला। आर्यभट्ट को यह भी पता था कि चन्द्रमा और दूसरे ग्रह स्वयं प्रकाशमान नहीं हैं, बल्कि सूर्य की किरणें उसमें प्रतिबिंबित होती हैं और यह भी कि पृथ्वी तथा अन्य ग्रह सूर्य के चारों ओर वृत्ताकार घूमते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि 'चंद्रमा' काला है और वह सूर्य के प्रकाश से ही प्रकाशित होता है। आर्यभट्ट ने यह सिद्ध किया कि वर्ष में 366 दिन नहीं वरन 365.2951 दिन होते हैं। आर्यभट्ट के 'बॉलिस सिद्धांत' (सूर्य चंद्रमा ग्रहण के सिद्धांत) 'रोमक सिद्धांत' और सूर्य सिद्धांत विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हैं। आर्यभट्ट द्वारा निश्चित किया 'वर्षमान' 'टॉलमी' की तुलना में अधिक वैज्ञानिक है।
आर्यभठ जी का जीवन परिचय

आर्यभठ जी का गणित में योगदान :

विश्व गणित के इतिहास में भी आर्यभट्ट का नाम सुप्रसिद्ध है। खगोलशास्त्री होने के साथ साथ गणित के क्षेत्र में भी उनका योगदान बहुमूल्य है। बीजगणित में भी सबसे पुराना ग्रंथ आर्यभट्ट का है। उन्होंने सबसे पहले 'पाई' (p) की कीमत निश्चित की और उन्होंने ही सबसे पहले 'साइन' (SINE) के 'कोष्टक' दिए। गणित के जटिल प्रश्नों को सरलता से हल करने के लिए उन्होंने ही समीकरणों का आविष्कार किया, जो पूरे विश्व में प्रख्यात हुआ। एक के बाद ग्यारह शून्य जैसी संख्याओं को बोलने के लिए उन्होंने नई पद्ध्ति का आविष्कार किया। बीजगणित में उन्होंने कई संशोधन संवर्धन किए और गणित ज्योतिष का 'आर्य सिद्धांत' प्रचलित किया।
वृद्धावस्था में आर्यभट्ट ने 'आर्यभट्ट सिद्धांत' नामक ग्रंथ की रचना की। उनके 'दशगीति सूत्र' ग्रंथों क ओ प्रा. कर्ने ने 'आर्यभट्टीय' नाम से प्रकाशित किया। आर्यभट्टीय संपूर्ण ग्रंथ है। इस ग्रंथ में रेखागणित, वर्गमूल, घनमूल, जैसी गणित की कई बातों के अलावा खगोल शास्त्र की गणनाएँ और अंतरिक्ष से संबंधित बातों का भी समावेश है। आज भी 'हिन्दू पंचांग' तैयार करने में इस ग्रंथ की मदद ली जाती है। आर्यभट्ट के बाद इसी नाम का एक अन्य खगोलशास्त्री हुआ जिसका नाम 'लघु आर्यभट्ट' था।

भारत का प्रथम उपग्रह :

खगोल और गणितशास्त्र, इन दोनों क्षेत्र में उनके महत्त्वपूर्ण योगदान के स्मरणार्थ भारत के प्रथम उपग्रह का नाम आर्यभट्ट रखा गया था।

तथ्य :

  • आर्यभट्टीयनामक ग्रंथ की रचना करने वाले आर्यभट्ट अपने समय के सबसे बड़े गणितज्ञ थे।
  • आर्यभट्ट ने दशमलव प्रणाली का विकास किया।
  • आर्यभट्ट के प्रयासों के द्वारा ही खगोल विज्ञान को गणित से अलग किया जा सका।
  • आर्यभट्ट ऐसे प्रथम नक्षत्र वैज्ञानिक थे, जिन्होंने यह बताया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती हुई सूर्य के चक्कर लगाती है। इन्होनें सूर्यग्रहण एवं चन्द्रग्रहण होने वास्तविक कारण पर प्रकाश डाला।
  • आर्यभट्ट ने सूर्य सिद्धान्त लिखा।
  • आर्यभट्ट के सिद्धान्त पर 'भास्कर प्रथम' ने टीका लिखी। भास्कर के तीन अन्य महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है- महाभास्कर्य, लघुभास्कर्य एवं भाष्य।
  • ब्रह्मगुप्त ने ब्रह्म-सिद्धान्त की रचना कर बताया कि प्रकृति के नियम के अनुसार समस्त वस्तुएं पृथ्वी पर गिरती हैं, क्योंकि पृथ्वी अपने स्वभाव से ही सभी वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। यह न्यूटन के सिद्वान्त के पूर्व की गयी कल्पना है।
  • आर्यभट्ट, वराहमिहिर एवं ब्रह्मगुप्त को संसार के सर्वप्रथम नक्षत्र-वैज्ञानिक और गणितज्ञ कहा गया है।

Post a Comment

Blogger

Your Comment Will be Show after Approval , Thanks

Ads

 
[X]

Subscribe for our all latest News and Updates

Enter your email address: