जन्म: 27 सितम्बर, 1873, नाडियाड, गुजरात
मृत्यु: 22 अक्टूबर, 1933, जिनेवा
कार्य: स्वाधीनता सेनानी, विधानवेत्ता
विट्ठल भाई पटेल स्वाधीनता आन्दोलन के एक प्रमुख नेता, विधानवेत्ता और लौहपुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल के बड़े भाई थे। वे केन्द्रीय असेंबली के सदस्य और बाद में अध्यक्ष भी बने। कांग्रेस छोड़कर उन्होंने स्वराज पार्टी की स्थापना भी की। इंग्लैंड से बैरिस्टर बनने के बाद उन्होंने वकालत के पेशे में अपनी अच्छी पहचान बना ली थी परन्तु शीघ्र ही राष्ट्रिय स्वाधीनता आन्दोलन में शामिल हो गए। विट्ठल भाई पटेल एक बेहतरीन वक्ता भी थे। कांग्रेस पार्टी के अन्दर उन्हें एक उग्र नेता के रूप में जाना जाता था। उनके और गांधीजी के विचार एकदम भिन्न थे इसी कारण कई मुद्दों पर उनके मध्य मतभेद भी रहे।
प्रारंभिक जीवन
विट्ठल भाई झावेरभाई पटेल का जन्म 27 सितम्बर, 1871 को गुजरात के करमसद गाँव में हुआ था। पांच भाईयों में वे तीसरे नंबर के थे और सरदार बल्लभ भाई पटेल से चार साल बड़े थे। आपकी प्रारभिक शिक्षा-दीक्षा करमसद और नड़ियाद में हुई। उन्होंने मुंबई में भी शिक्षा ग्रहण की थी। इसके बाद वे गोधरा और बोरसद के न्यायालय में एक कनिष्ठ अधिवक्ता के तौर पर कार्य करने लगे। उनका सपना था इंग्लैंड जाकर बैरिस्टर बनना। बहुत छोटी उम्र में ही उनका विवाह करा दिया गया था।
उनके छोटे भाई बल्लभ भाई पटेल भी कड़ी मेहनत और स्वाध्ययन से क़ानून की पढ़ाई करके कनिष्ठ अधिवक्ता का कार्य कर रहे थे और वो भी इंग्लैंड जाकर बैरिस्टर बनना चाहते थे पर बड़े भाई का सम्मान करते हुए उन्होंने इस बाबत जुटाए रुपये उनको दे दिए और इंग्लैंड में विट्ठल के रहने का खर्च भी उठाया। इस प्रकार विट्ठल भाई पटेल इंग्लैंड जाकर बैरिस्टर बन पाए।
कैरियर
इंग्लैंड पहुँच कर विट्ठल भाई ने कानून की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया और 36 महीने का पाठ्यक्रम 30 महीने में ही पूरा कर लिया और अपनी कक्षा में प्रथम स्थान पर रहे। सन 1913 में वे गुजरात वापस लौट आये और बॉम्बे और अहमदाबाद के न्यायालयों में वकालत करने लगे। शीघ्र ही विट्ठल भाई एक सम्मानीय और महत्वपूर्ण बैरिस्टर बन गए और पर्याप्त धन भी अर्जित किया। उन्होंने बहुत थोड़े समय में काफी ख्याति अर्जित कर ली थी पर इस बीच उनके निजी जीवन में एक दुखद घटना घटी – उनकी पत्नी सन 1915 में परलोक सिधार गयीं जिससे विट्ठल भाई को गहरा झटका लगा।
राजनैतिक जीवन
पत्नी के निधन के बाद विट्ठल भाई की रूचि सामाजिक और राजनैतिक कार्यों में बढ़ी। हालांकि वे महात्मा गाँधी के राजनैतिक दर्शन, सिद्धांतों और नेतृत्व से पूरी तरह कभी भी सहमत नहीं थे फिर भी देश की आजादी में अपना योगदान देने के लिए उन्होंने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली। हालाँकि जन-साधारण में उनकी बड़ी पैठ नहीं थी पर अपने जोशीले और तार्किक भाषणों और लेखों के माध्यम से उन्होंने लोगों का ध्यान खींचा।
उन्होंने असहयोग आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया पर जब चौरी-चौरा कांड के बाद गाँधी जी ने परामर्श किये बगैर असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया तब विट्ठल भाई पटेल ने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया और चित्तरंजन दास और मोतीलाल नेहरु के सहयोग से स्वराज पार्टी की स्थापना की। स्वराज पार्टी का मुख्य उद्देश्य था विधान परिषदों में प्रवेश कर सरकार के काम-काज को बाधित करना। स्वराज पार्टी ने कांग्रेस के भीतर दरार पैदा कर दिया था पर अपने लक्ष्यों में बहुत सफल नही हो सकी।
विट्ठल भाई बॉम्बे विधान परिषद् के लिए चुने गए जहाँ उन्हें देश की आजादी से सम्बन्धित कोई कार्य करने का अवसर नहीं मिला परन्तु उन्होंने अपने भाषणों और वाकपटुता के माध्यम से अंग्रेजी अधिकारियों और सरकार की नीतियों पर खुला प्रहार किया।
सन 1923 में वे केन्द्रीय विधान परिषद् के लिए चुने गए और 1925 में इसके अध्यक्ष बन गए। उनकी  निष्पक्ष और निर्भीक विचारधारा ने लोगों पर उनके व्यक्तित्व की अमिट छाप छोड़ी। विट्ठल भाई संसदीय विधि विधानों के प्रकांड विद्वान थे जिसके कारण सदन में सभी दल उन्हें आदर और सम्मान देते थे  और उनकी दी हुई विद्वत्तापूर्ण व्यवस्था सभी लोगों को मान्य हुआ करती थी। केंद्रीय विधान सभा के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने न सिर्फ भारत बल्कि विदेशों में भी ख्याति अर्जित की। विधि से सम्बंधित अपने सूक्ष्म ज्ञान से उन्होंने तत्कालीन सरकार को भी कई बार परेशानी में डाल दिया था।
विट्ठल भाई ने केंद्रीय विधान सभा की अध्यक्षता के दौरान जैसे उच्च आदर्श उपस्थित किए, उसके आधार पर यह बात नि:संकोच कही जा सकती है वे इस मामले में अपने पूर्ववर्तीओं से अग्रणी थे। मेरठ षड्यंत्र केस के दौरान उन्होंने सरकार को यह राय दी कि या तो सुरक्षा बिल स्थगित रखा जाय और नहीं तो सरकार मेरठ षड्यंत्र केस को उठा ले पर जब सरकर ने यह बात नहीं मानी तो सुरक्षा बिल पेश होने पर उन्होंने अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए अयोग्य करार दे दिया।
सन् 1930 में जब कांग्रेस पार्टी ने विधान सभाओं का बहिष्कार करने का आह्वान किया तो विट्ठल भाई ने केन्द्रीय विधान सभा की अध्यक्षता से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कहा – स्वतंत्रता की इस लड़ाई में मेरा उचित स्थान विधान सभा की कुर्सी पर नहीं बल्कि रण क्षेत्र में है।
जब कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज का नारा दिया तब विट्ठल भाई कांग्रेस में पुनः शामिल हो गए पर अंग्रेजी सरकार ने सन् 1930 में कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों के साथ इन्हें भी गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। जेल में उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया जिसके कारण अवधि पूरी होने के पूर्व ही उन्हें 1931 में रिहा कर दिया गया। इसके बाद वे स्वास्थ्य लाभ के लिए यूरोप चले गए।
निधन
जेल से रिहा होने के बाद विट्ठल भाई इलाज के लिया ऑस्ट्रिया के शहर वियना चले गए। वहां उनकी मुलाकात नेताजी सुभाषचन्द्र बोस से हुई, जो खुद भी स्वास्थ्य लाभ के लिए वहां गए हुए थे। नेताजी का स्वास्थ्य तो सुधर रहा था पर विट्ठल भाई का स्वास्थ्य गिरता गया और 22 अक्टूबर 1933 को जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में उनकी मृत्यु हो गई। उनका अंतिम संस्कार 10 नवम्बर 1933 को बॉम्बे में किया गया।
टाइम लाइन (जीवन घटनाक्रम)
1873: जन्म हुआ
1913: इंग्लैंड से बैरिस्टर बनकर भारत वापस लौट आये
1915: पत्नी की मृत्यु हो गयी
1922: कांग्रेस छोड़कर स्वराज पार्टी की स्थापना की
1923: केन्द्रीय विधान सभा के लिए चुने गए
1925: केन्द्रीय विधान सभा के अध्यक्ष चुने गए
1930: केन्द्रीय विधान सभा अध्यक्ष  पद से त्यागपत्र दे दिया, कांग्रेस में पुनः शामिल, सरकार ने गिरफ्तार किया
1931: ख़राब स्वास्थ्य के कारण जेल से छोड़े गए और इलाज के लिए यूरोप गए
1933: विएना में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से मुलाकात हुई
1933: 22 अक्टूबर को जिनेवा में देहांत हो गया
       
   

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