जन्म एवं परिवार :भास्कराचार्य का जन्म 1114 ई. को विज्जडविड नामक गाँव में हुआ था जो आधुनिक पाटन के समीप था। भास्कराचार्य के पिता का नाम महेश्वराचार्य था तथा वे भी गणित के एक महान विद्वान थे। चूँकि पिता एक उच्च कोटि के गणितज्ञ थे अतः उनके सम्पर्क में रहने के कारण भास्कराचार्य की अभिरुचि भी इस विषय के अध्ययन की ओर जागृत हुई। उन्हें गणित की शिक्षा मुख्य रूप से अपने पिता से ही प्राप्त हुई। धीरे-धीरे गणित का ज्ञान प्राप्त करने की दिशा में उनकी अभिरुचि काफ़ी बढ़ती गई तथा इस विषय पर उन्होंने काफ़ी अधिक अध्ययन एवं शोध कार्य किया।
भास्कराचार्य के पुत्र लक्ष्मीधर भी गणित एवं खगोल शास्त्र के महान विद्वान हुए। फिर लक्ष्मीधर के पुत्र गंगदेव भी अपने समय के एक महान विद्वान माने जाते थे। इस प्रकार हम देखते हैं कि भास्कराचार्य के पिता महेश्वराचार्य से प्रारम्भ होकर भास्कराचार्य के पोते गंगदेव तक उनकी चार पीढ़ियों ने विज्ञान की सेवा में अपना बहुमूल्य योगदान दिया। परन्तु जितनी प्रसिद्धि भास्कराचार्य को मिली उतनी अन्य लोगों को नहीं मिल पाई।
भास्कराचार्य जी का रचनाएँ :[Bhaskaracharya's compositions in Hindi]
भास्कराचार्य की अवस्था मात्र बत्तीस वर्ष की थी तो उन्होंने अपने प्रथम ग्रन्थ की रचना की। उनकी इस कृति का नाम सिद्धान्त शिरोमणि था। उन्होंने इस ग्रन्थ की रचना चार खंडों में की थी। इन चार खण्डों के नाम हैं- 'पारी गणित', बीज गणित', 'गणिताध्याय' तथा 'गोलाध्याय'। पारी गणित नामक खंड में संख्या प्रणाली, शून्य, भिन्न, त्रैशशिक तथा क्षेत्रमिति इत्यादि विषयों पर प्रकाश डाला गया है। जबकि बीज गणित नामक खंड में धनात्मक तथा ऋणात्मक राशियों की चर्चा की गई है तथा इसमें बताया गया है कि धनात्मक तथा ऋणात्मक दोनों प्रकार की संख्याओं के वर्ग का मान धनात्मक ही होता है।भास्कराचार्य जी का द्वितीय ग्रंथ : [Bhaskaracharya's second book in Hindi]
भास्कराचार्य द्वारा एक अन्य प्रमुख ग्रन्थ की रचना की गई जिसका नाम है लीलावती। कहा जाता है कि इस ग्रन्थ का नामकरण उन्होंने अपनी लाडली पुत्री लीलावती के नाम पर किया था। इस ग्रन्थ में गणित और खगोल विज्ञान सम्बन्धी विषयों पर प्रकाश डाला गया था। सन् 1163 ई. में उन्होंने करण कुतूहल नामक ग्रन्थ की रचना की। इस ग्रन्थ में भी मुख्यतः खगोल विज्ञान सम्बन्धी विषयों की चर्चा की गई है। इस ग्रन्थ में बताया गया है कि जब चन्द्रमा सूर्य को ढक लेता है तो सूर्य ग्रहण तथा जब पृथ्वी की छाया चन्द्रमा को ढक लेती है तो चन्द्र ग्रहण होता है।भास्कराचार्य जीके ग्रंथो की भाषा :[Bhaskaracharya language of Books in Hindi]
भास्कराचार्य जी का निधन : [Bhaskaracharya passed away]
भास्कराचार्य का देहावसान सन् 1179 ई. में 65 वर्ष की अवस्था में हुआ। हालाँकि वे अब इस संसार में नहीं हैं परन्तु अपने ग्रन्थों एवं सिद्धान्तों के रूप में वे सदैव अमर रहेंगे तथा वैज्ञानिक शोधों से जुड़े सभी लोगों का पथ-प्रदर्शन करते रहेंगे।भास्कराचार्य ने क्या आविष्कार किया? [What did Bhaskaracharya invent? in Hindi]
"कुट्टाका" द्विघात संकेतक समीकरणों को उनके द्वारा 12 वीं शताब्दी में दिया गया था इससे पहले कि यूरोपीय गणितज्ञों को 17 वीं शताब्दी में मिला। 7 वीं शताब्दी में ब्रह्मगुप्त ने एक "खगोलीय मॉडल" विकसित किया, जिसके उपयोग से भास्कर "खगोलीय मात्रा" को परिभाषित करने में सक्षम थे ।
भास्कराचार्य का योगदान क्या है? [What is Bhaskaracharya's contribution? in Hindi]
कई तरह से भास्कराचार्य 12 वीं शताब्दी के गणितीय ज्ञान के शिखर का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे उज्जैन में खगोलीय वेधशाला के प्रमुख थे। वह पृथ्वी की वक्रता के बारे में हैरान नहीं था और उसे समझाया "एक वृत्त की परिधि का सौवाँ भाग सीधा प्रतीत होता है।
बहुत सुन्दर लेख है।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर , मै आपकी daily reader हूँ....आप बहुत अच्छा लिखते हो और सभी पोस्ट में काफी helpful जानकारी देते है ...thank you sir
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